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स्त्री और प्रकृति (कविता) लेखनी वार्षिक प्रतियोगिता -10-Mar-2022

  

स्त्री और प्रकृति

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नदी
बहती चली
अपने मीठे शीतल जल से
सबको तृप्त करती रही

स्त्री
नदी समान ही इसका जीवन
खुद से ज्यादा परिवार की चिन्ता
जहाँ जन्म लिया बचपन किशोरावस्था और
जवानी के कुछ वर्ष बिताऐ
बिछड़ कर अपनों से
चली पिया संग

मेघ
काले बादल
बरसे छम छम
ले रुकने का नाम
नदी उफनती आती बाढ़
मचाती तबाही

स्त्री
हर दुख सहती
पर जब सीमा होती पार दुखों की
बात आती अपनी इज्जत की
लेती रूप माँ काली का

प्रकृति
प्रकृति से जो मिला हमें
नदियां पर्वत और पहाड़
उसको संवारे रखें
वरना नतीजा भुगतने को
रहना होगा तैयार
***
कविता झा 'काव्या कवि'

# लेखनी

#लेखनी वार्षिक प्रतियोगिता

१०.०३.२०२२


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2 Comments

Seema Priyadarshini sahay

11-Mar-2022 05:11 PM

बहुत खूबसूरत

Reply

Swati chourasia

10-Mar-2022 06:25 PM

Very beautiful 👌

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